मुँह का कैंसर भारत में सबसे आम कैंसर प्रकारों में से एक है, जिसमें हर साल 100,000 से अधिक नए मामले सामने आते हैं। इसका मुख्य कारण तंबाकू और पान मसाला का सेवन है, जो विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में व्यापक है। इसके बावजूद, शुरुआती पहचान और रोकथाम के प्रति जागरूकता का स्तर बहुत कम है। शिक्षा की कमी और स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच की समस्या कैंसर के बढ़ने का कारण बनती है।
मुँह के कैंसर के लक्षण अक्सर हल्के होते हैं, जैसे मुँह में घाव या छाले जो जल्दी ठीक नहीं होते। इसके अतिरिक्त निगलने में कठिनाई और आवाज में बदलाव जैसे लक्षण भी हो सकते हैं, जिन्हें लोग अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं। इन लक्षणों की सही पहचान और उपचार समय पर नहीं किया जाता, जिससे कैंसर का उपचार कठिन हो जाता है।
मुँह के कैंसर का सामाजिक और आर्थिक प्रभाव भी बहुत गंभीर होता है। मरीजों को अक्सर समाज से बहिष्कृत किया जाता है, क्योंकि यह बीमारी शारीरिक रूप से दिखाई देती है। इसके अलावा, इलाज की लागत भी परिवारों पर भारी पड़ती है, जिससे उन्हें वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ता है। भारत की स्वास्थ्य प्रणाली के लिए यह एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि कई लोगों तक उचित इलाज नहीं पहुँच पाता।
इसलिए, स्वास्थ्य संगठनों ने तंबाकू नियंत्रण उपायों को बढ़ावा देने और मुँह के कैंसर के लक्षणों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए अभियान शुरू किए हैं। यह जरूरी है कि जागरूकता अभियानों में समय पर निदान और तंबाकू के हानिकारक प्रभावों पर जोर दिया जाए।
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